Wednesday 27 October 2010

एक विषय जिस पर खुलकर चर्चा की जरूरत है

एक विषय जिस पर खुलकर चर्चा की जरूरत है........
पिछले साल जिस परमाणू समझौते के लिए भारत में इतना विरोध प्रदशर्न हुआ वह भारत छोड़ो आन्दोलन या किसी सत्याग्रह से कम नहीं था। लगभग पूरा देश दो पक्षों में बटा हुआ आ रहा था। इसमें खास बात यह थी बहुत कम लोग ही लोग इसमें बारे में विस्तार से जानते थे कि इस समझौते में किसको क्या मिलेगा और कौन क्या खोएगा। समर्थन करने वाले लोग एक राजनैतिक पार्टी नेतृत्व के निर्णय को शिरोधार्य कर थे या कहें पार्टी नेता के पक्ष में निष्ठा व्यक्त कर रहे थे जिनमें जनसामान्य से लेकर पॄे लिखे और तकनीकी क्षेत्र के विद्वान भी शामिल थे और विरोध में पूरा विपछ खड़ा था।


इस बेमेल समझौते से संबंधित जानकारी पूरी दुनिया में समाचर पत्रों, पत्रिकाओं, इन्टरनेट पर भरी पड़ी हुई थी। यह पूरी तरह से सिद्ध हो चुका है कि इस समझौते से भारत को बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान ही होगा। आखें बद कर लेने से आने वाला तूफान का रुख मुड़ नहीं जाता।
साधारण से उदाहरण से हम कह सकते है कि आज की तारीख में एक 150 सी.सी. मोटर बाईक की कीमत में हम वर्षो पहले बन्द हो चुके लेम्ब्रटा स्कूटर खरीदने जा हरें हैं जो आज किलो के भाव से कम पर कोई नहीं खरीदता है, अल्टो, विफ्ट और नई यूरो 34 मानक चारपहिया के युग में उससे भी ज्यादा कीमत में हम पुरानी प्रिया पमिनि माडल चारपहिया खरीदें जा रहे हैं, एक बहुमंजिला इमारत की कीमत में हम जर्जर झोपड़ा खरीदने जा रहे हैं। यह कोई छोटामोटर समझौता नहीं एक लाख बीस हजार करोड़ (120000 करोड0) रूपये से भी बहुत ज्यादा है है जो कि एक बहुत ही बड़ी रकम है और प्रत्येक भारतवासी का इस पर पूरा हक है किन्तु कुछ लोगों के स्वाथ के कारण यह समझौता हो गया। बड़ी ही हास्यास्यद बात है या कह सकते है कि ’’अन्धा बांटे रेवड़ी चीन्ह चीन्ह के दे’’ और अमेरिक अपना कचरा सोने के दाम में भारत को बेच रहा है और हम ऐसे खुश हो रहें है कि जैसे कुछ सालों बाद हमें मुफत में बिजनी मिल जागेयी किन्तु हम नहीं जानते कि आज हमें जो बिजली 4 से 6 रूपये यूनिट में मिल रही है वह हमें 20 से 25 रूपये प्रति यूनिट पर मिलेगी। हमें महाराष्ट्र के इनरान बिजली संयत्र को नहीं भूलना चाहिए जिसकी बिजली इतनी महंगी थी की वह संयत्र बंद करना पॄा और सरकार को हजारों करोड़ का नुकासान उठाना पड़ा।

अगर परमाणू संयत्र इतने ही कारगर है तो क्यो सारे विकसित राष्ट्र इसे अपने यहां नहीं लगाते। क्यों वे इथेनाल से उर्जा बानाते है सिससे विश्वव्यापी खाद्य संकट पैदा होता है। अमेंरिका क्यों नेवाडा में विश्व का सबसे बड़ा सौर उर्जा का बिजली संयत्र स्थापित करता है, क्यों वह समुद्र की लहरों बिजली उत्पन्न कर रहा है और समुद्र में पवन उर्जा के संयत्र लगा रहा है। खुद अमेरिका में पिछले 30 साल से कोई नया परमाणु संयत्र नहीं लगा है और जो पुराने हैं उन्हें भी वह भारत में बेचने की कोशिश कर रहा है।
हम भी क्यो नहीं अपने देश में पवन उर्जा, सौर उर्जा को इस्तेमाल नहीं करते है। ठीक है फिलहाल यह बहुत महंगी है क्योंकि यह अपनी आरंभिक अवस्था में है। हमें नहीं भूलना चाहिये के द्वितीय विश्व युद्ध के समय जब पेनिसलिन का अविष्कार हुआ था तो यह उस समय इनती मंहगी थी कि इसे रोगी के मूत्र से वापस निकाल लिया जाता था और आज यह हर दवाई की दुकान पर आसानी से उपलब्ध है कारण कि आज इसका उत्पादन बहुत हो रहा है और यह सस्ती हो गई है। ऐसे ही अगर सौर उर्जा को प्रोत्साहित किया जाऐ तो यह एक इन्जीनीयरिंग का विषय नहीं होकर आम घरेलू उद्योग की शक्त ले लेगा और घर घर में बिजली बनाई जाऐगी। हम इसमें चीन देश का उदाहरण ले सकते है जहां की वस्तु भारत मे निर्मित वस्तुओं की कीमत से आधी बल्कि उससे भी कम होती है क्योंकि इन्जीनीयरिंग और टेक्नोलाजी हमारे यहां बड़े बड़े घरानों, कंपनियों की बपौती होती है और चीन में इलेक्ट्रानिक वस्तुऐ घर घर में बनती हैं, जाहिर है कि वस्तु की लागत कम होगी और वह सस्ती कीमत पर बाजार में उपलब्ध होगी।
क्या हमारा देश विकसित राष्ट्रों के कचरा इकट्ठा करने का स्थान हो गया है जो हम दूसरे देशों का कचरा हमारे यहां आयात करते हैं। हमें अमेरिका या किसी भी देश के पैर पड़ने की जरूरत है, उसके यहां से बिजली नहीं आयेगी तो हम अन्धेरे मे मर नहीं जाऐगे। भारत दुनिया को सबसे बड़ा बाजार है हमें किसी की भीख की जरूरत नहीं है, पूरी दुनिया भारत में अपना सामान खपाने को तैयार है। आज जरूरत है हमें जागरूक होने की और जन सामान्य को यह बताने कि सरकार कोई भी अव्यवहारिक निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र नहीं है।
इस समझौते पर सरकार को पुर्ननिणय/समीक्षा की जरूरत है और इस विषय पर पूरे देश में खलकर बहस होनी चाहिए और अगर लगता है कि भारत को वाकई इस समझौते से बहुत नुकसान होगा तो हमें यह समझौता रद्द करने में देरी नहीं करनी चाहिए। समझौता रद्द होने से हम भूखे नहीं मर जाऐगें या हमारा देश छोटा नहीं हो जाऐगा। पिछले साल की मंदी ने दिखा दिया की हमारी अर्थव्यवस्था अमेरिका से कई गुना मजबूत है और हम आत्मनिर्भर हैं।

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