Thursday 28 October 2010

अनुपूरक क्षतिपूर्ति संधि

अमेरिकी कंपनियों की चिंताओं को दूर करते हुए भारत ने अनुपूरक क्षतिपूर्ति संधि (सीएससी) पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पूर्वी एशियाई देशों की तीन दिवसीय यात्रा के दौराना टोकियो से रवाना होते समय सीएससी पर हस्ताक्षर के बाद आईएईए से संफ करने को हरी झंडी दी थी। गौरतलब है कि हाल ही में अमेरिका ने कहा था कि बिना सीएससी पर हस्ताक्षर किए भारत के साथ परमाणु करार में गतिरोध उत्पन्न हो सकता है।

सीएससी संधि परमाणु संचालकों की वित्तीय दायित्वों के दिशानिर्देश निर्धारित करती है। भारत का यह कदम हाल ही में संसद में पास किए गए परमाणु दायित्व कानून के संदर्भ में अमेरिकी कंपनियों की चिंताओं को दूर करने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। यह अंतरराष्ट्रीय संधि परमाणु दुर्घटना के मामले में मुआवजे का निर्धारण करती है। भारत सहित 14 देश इस पर हस्ताक्षर कर चुके हैं।
हालांकि इसका अनुमोदन केवल अमेरिका, अर्जेंटिना, मोरक्को और रोमानिया ने ही किया है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा आयोग के अनुसार,अपनी जमीन पर परमाणु संयंत्रों के नहीं होने और परमाणु दायित्व पर किसी मौजूदा संधि में शामिल नहीं होने के बावजूद सभी देश इस संधि में भाग ले सकते हैं। 12 सितंबर 1997 को अपनाई गई यह संधि आयोग के 41वें आम सभा में दस्तखत के लिए रखी गई।

वैश्विक कानून के तहत मुआवजा
परमाणु क्षतिपूर्ति के लिए इस संधि के लागू होने के बाद परमाणु दुर्घटनाओं के मामले में पीडितों को एक रूप वैश्विक कानूनी व्यवस्था के तहत मुआवजा मिल सकेगा। यानि दुर्घटना होने के बाद भारत नुकसान का आंकलन कर मुआवजे का दावा नहीं कर सकता। हालांकि सीएससी में पीडितों को मुआवजा की राशि बढाने के लिए अंतरराष्ट्रीय कोष के स्थापना और देश के विशेष आर्थिक क्षेत्र में यह पर्यटन और मत्स्य जैसे आयों के नुकसान सहित असैन्य क्षति को शामिल करने की अनुमति देता है।
कंपनियों को राहत
यह संधि संचालकों के वित्तीय दायित्व, सरकार की संभावित कानूनी कार्रवाई का समय कम करने, परमाणु संचालकों के बीमा और अन्य वित्तीय सुरक्षा कदमों की निगरानी और इन मामलों से जुडे दावों के एक सक्षम कोर्ट में सुनवाई के दिशा-निर्देशों को तय करती है।
युद्ध, आपदा में अप्रभावी
इस संधि के अनुसार यदि कोई परमाणु दुर्घटना होती है तो इसके लिए ऑपरेटर पूरी तरह से जिम्मेदार होगा। लेकिन युद्ध, सैनिक संघर्ष और प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में इस संधि के नियम लागू नहीं किए जाएंगे।

अमेरिका की ओर झुकाव नहीं
पीएम ने कहा भारत का झुकाव अमेरिका की ओर नहीं है और भारत की विदेश नीति की प्राथमिकता राष्ट्रहितों को मजबूत बनाना है। भारत चाहता है कि अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में शीघ्र ही सुधार हो ताकि भारत जैसे विकासशील देश को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिल सके। भारत की विदेश नीति से संबंधित प्रश्न के जवाब में मनमोहन सिंह ने कहा कि हम किसी भी देश की ओर में नहीं झुक रहे हैं। वैश्वीकरण के दौर में एक राष्ट्र की दूसरे राष्ट्रों पर परस्पर निर्भरता बढती जा रही है। हम अमेरिका, रूस, जापान, चीन और आसियान के सदस्य देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने की ओर अग्रसर हैं।

मलेशिया से आर्थिक समझौता
मलेशिया पहुंचे प्रधानमंत्री की मलेशियाई प्रधानमंत्री मोहम्मद नजीव रजाक के साथ चर्चा के बाद इस समझौते को अंतिम रूप दिया गया। दोनों देशों ने बुधवार को व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते से दोनों देशों के बीच रक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक सहयोग बढने की उम्मीद है। दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच चली चर्चा के बाद इसके तहत पांच पैक्ट पर हस्ताक्षर किए गए। इसके बाद दोनों देशों के नेताओं ने उम्मीद जताई कि समझौते से दोनों देशों के बीच आर्थिक रिश्ते और मजबूत होंगे और मुक्त व्यापार दिशा में यह काफी अहम साबित होगा।
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