Wednesday 27 October 2010

परमाणु ईंधन के पुन: प्रसंस्करण समझौते के तय होने के बाद

एक बड़े व्यापारिक समूह ने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के पूर्ण क्रियान्वयन के लिए जरूरी अन्य दो कार्यों को शीघ्र निपटाने की मांग की है। 
असैन्य परमाणु समझौते के तहत अमेरिका से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से पहले भारत-अमेरिका को परमाणु अप्रसार की गारंटी देने वाले समझौते पर हस्ताक्षर करने हैं और भारत द्वारा एक परमाणु उत्तरदायित्व कानून को पारित किए जाने की आवश्यकता है।




भारत-अमेरिका व्यापार परिषद (यूएसआईबीसी) के पॉलिसी एडवोकेसी निदेशक टेड जोंस ने कहा, ''दो महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रस्ताव से भारत वैश्विक परमाणु आपूर्ति श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका हासिल करने में सक्षम हो जाएगा।''



उन्होंने उम्मीद जताई कि उपरोक्त मुद्दों पर शीघ्र ध्यान दिया जाएगा क्योंकि अमेरिकी और भारतीय कंपनियां न केवल भारत में साझेदारी करने बल्कि पूरी दुनिया में परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए तत्पर हैं।



यूएसआईबीसी ने कहा कि परमाणु उत्तरदायित्व विधेयक किसी दुर्घटना की स्थिति में न केवल प्रभावी और सुनिश्चित हर्जाने का तरीका तय करेगा बल्कि यह जिम्मेदार राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आपूर्तिकर्ताओं द्वारा भारत के लिए एक सुरक्षित परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम विकसित करने में भी सक्षम होगा।



परमाणु ईंधन के पुन: प्रसंस्करण समझौते पर सहमति को अमेरिका-भारत वाणिज्यिक परमाणु सहयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताते हुए यूएसआईबीसी ने इसका उल्लेख किया कि अमेरिका के साथ ऐसा समझौता करने वाला भारत तीसरा देश है।



अमेरिका ने इस प्रकार की सुविधा केवल यूरोपीय परमाणु संघ यूरोटोम और जापान को दी है। अमेरिका ने यह सुविधा चीन, ब्राजील, इंडोनेशिया, के साथ ही 123 समझौता करने वाले 16 अन्य देशों को भी नहीं दी है। यूएसआईबीसी के अध्यक्ष रॉन सोमर्स ने कहा कि पुन: प्रसंस्करण समझौते से भारत-अमेरिका के बीच विशेष विश्वास झलकता है।



भारत के वर्ष 2030 तक परमाणु बिजली का उत्पादन 60,000 मेगावॉट तक पहुंचाने की महत्वाकांक्षी योजना को देखते हुए अमेरिकी कंपनियों को काफी अधिक आपूर्ति सौदे हासिल होने की उम्मीद है।

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