Thursday 28 October 2010

गैर जरूरी है परमाणु करार

दैनिक जागरण अपने संपादकीय के माध्यम से सदैव परमाणु करार का खुलकर समर्थन करता है और यह आभास कराता है कि जो इस करार का विरोध कर रहे हैं वे राष्ट्र हित की उपेक्षा कर रहे हैं। उदाहरणस्वरूप 13 जून और 25 जून का संपादकीय देखा जा सकता है। मैं इन संपादकीय में उठाए गए प्रश्नों का उत्तर देना चाहता हूं और विनम्रतापूर्वक यह भी कहना चाहता हूं कि जो लोग परमाणु करार का विरोध कर रहे हैं वे राष्ट्र विरोधी नहीं हैं। परमाणु करार विरोधी पूरी दृढ़ता के साथ विश्वास रखते हैं कि इस करार का विरोध राष्ट्रीय हित में है। इस मुद्दे
को तार्किक परिणति तक तभी पहुंचाया जा सकता है, जब हम एक दूसरे को राष्ट्र विरोधी कहना बंद करें। ऊर्जा सुरक्षा का सवाल और इसमें परमाणु ऊर्जा की भूमिका शुरू से ही ध्यानाकर्षण का कारण रही है। खासतौर से तब से, जब सरकार ने ऊर्जा सुरक्षा के लिए करार को अपरिहार्य बताना शुरू कर दिया था।
17 अगस्त, 2007 को राज्यसभा में मैंने इस करार पर हुए गहन विमर्श में हिस्सा लिया था। इसमें मैंने कहा था कि सर्वप्रथम तो अगर हम परमाणु ऊर्जा के आयातित रिएक्टरों और आयातित ईधन पर निर्भर रहे तो ऊर्जा के मोर्चे पर आत्मनिर्भर कैसे हो सकते हैं? इनकी आपूर्ति किसी भी वक्त रोकी जा सकती है। क्या कोई भी देश किसी भी क्षेत्र में सुरक्षा के लिए आयात पर निर्भर रह सकता है? दूसरा मुद्दा है कि परमाणु ऊर्जा महंगा स्त्रोत है। कोयला आधारित बिजलीघर स्थापित करने में प्रति मेगावाट 4.5 करोड़ रुपये लागत आती है। गैस या नैप्था से चलने वाले बिजलीघर की लागत तीन करोड़ रुपये प्रति मेगावाट है। स्वदेशी परमाणु रिएक्टर पर 7-8 करोड़ रुपये प्रति मेगावाट खर्च आता है जबकि ऐसे आयातित रिएक्टर का खर्च दस करोड़ है। अपने जवाब में प्रधानमंत्री ने इन आंकड़ों का खंडन नहीं किया, बल्कि उन्होंने पूरे मामले से ही कन्नी काट ली। तीसरे, 20 हजार अतिरिक्त मेगावाट परमाणु ऊर्जा के लिए दो लाख करोड़ रुपये की आवश्यकता पड़ेगी। यह पैसा कहां से आएगा? इसके अलावा, हम पेट्रोल और गैस के बढ़ते दामों से परेशान हैं। यूरेनियम की बढ़ती लागत का क्या होगा? पिछले एक साल में यूरेनियम की प्रति पौंड लागत 21 डालर से बढ़ कर 36 डालर हो गई। यानी इसमें 70 फीसदी वृद्धि हो चुकी। अब इसका भाव 75 डालर प्रति पौंड है। कुछ सप्ताह पहले यह 135 डालर प्रति पौंड तक पहुंच गया था। मैंने डा. ए. गोपालकृष्णन को उद्धृत किया था, 'किसी भी समय, हमें बिजली उत्पादन के तमाम स्त्रोतों में से सर्वश्रेष्ठ विकल्प को आजमाना चाहिए। स्वदेशी कोयला, आयातित कोयला, जलविद्युत उत्पादन, पड़ोसी देशों में जलविद्युत उत्पादन, स्वदेशी परमाणु कार्यक्रम, त्रिस्तरीय कार्यक्रम जिसमें पवन, सौर और कूड़े-कचरे से बनने वाली बिजली आती है, ऐसे ही विकल्प हैं। योजना आयोग ऐसा अध्ययन करने और इस अध्ययन से विकसित होने वाली समझ के आधार पर नीति बनाने में पूरी तरह असफल है।
दिसंबर 2005 में योजना आयोग द्वारा पेश की गई अनुपूरक ऊर्जा नीति पर विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में भविष्य के लिए सतही और लचर बातों की भरमार है। आखिर प्रधानमंत्री ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए 30 से 40 हजार मेगावाट परमाणु ऊर्जा की आवश्यकता का बखान किस आधार पर कर रहे हैं? 15 हजार मेगावाट या फिर 70 हजार मेगावाट क्यों नहीं? आयातित रिएक्टरों के लिए प्रधानमंत्री के अति उत्साह की व्याख्या इस रूप में की जा सकती है कि यह विदेशी परमाणु कंपनियों के स्वागत में कालीन बिछाने का सोचा-समझा प्रयास है ताकि वे अपने पुराने उपकरण भारत में खपा सकें तथा परमाणु ऊर्जा के प्रोत्साहन के लिए ऐसे प्रयास करें जो सवालों के घेरे में हों।' अनेक अन्य विशेषज्ञ भी पुष्टि कर चुके हैं कि परमाणु ऊर्जा महंगी शक्ति है।
राज्यसभा में सवालों का जवाब देते हुए 9 मई, 2007 को ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि हम हिमालय क्षेत्र में एक लाख पचास हजार मेगावाट पनबिजली उत्पादन की क्षमता रखते हैं। उन्होंने आगे कहा कि इस दिशा में अब तक कोई खास काम नहीं किया गया। केवल तीन हजार मेगावाट क्षमता ही इस्तेमाल की जा रही है। पनबिजली सस्ती और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाने वाली है। 20-30 हजार मेगावाट परमाणु बिजली बनाने में विशाल धनराशि खर्च करने के बजाए पनबिजली संसाधन विकसित क्यों नहीं किए जा रहे हैं? आयातित परमाणु रिएक्टर और ईधन के संदर्भ में यह कहा जाता है कि भारत में इनकी कमी है। जबकि ऐसा नहीं है। हमारे पास झारखंड, आंध्र प्रदेश, मेघालय और राजस्थान में यूरेनियम के ंिवशाल भंडार हैं। अफसोस की बात यह है कि अब तक इनमें से केवल झारखंड के भंडार का ही दोहन किया गया है। हाल में भारत सरकार ने आंध्र प्रदेश के भंडारों में खनन का फैसला लिया है। मंत्रिमंडल की जिस बैठक में यह फैसला लिया गया, उसके बाद वित्त मंत्री ने कहा था कि ये भंडार पचास साल तक 12 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए पर्याप्त हैं। एक यूरेनियम की खदान तीन साल में तैयार की जा सकती है, जबकि रिएक्टर के निर्माण में पांच साल का समय लगता है।
भारत ने त्रिस्तरीय परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत 1954 में की। पहले चरण में भारी पानी रिएक्टर स्थापित किए गए। इनमें प्राकृतिक यूरेनियम का ईधन के रूप में इस्तेमाल हुआ। दूसरे चरण में फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों की स्थापना की गई। इनमें प्रथम चरण में इस्तेमाल प्राकृतिक यूरेनियम से प्राप्त प्लूटोनियम प्रयुक्त होता है। फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों की एक खास बात यह है कि विद्युत उत्पादन में ये जितना ईधन खर्च करते हैं उससे अधिक लौटा देते हैं। इस प्रकार फास्ट ब्रीडर रिएक्टर यूरेनियम की कमी नहीं होने देते। तमिलनाडु के कालपक्कम में बीस साल से फास्ट ब्रीडर रिएक्टर के आदर्श नमूने का निर्माण जारी है जो 2010-11 तक पूरा हो जाना चाहिए। इस परियोजना की सफलता के बाद हम इस प्रकार के अनेक रिएक्टर स्थापित करने में समर्थ हो जाएंगे और 2025 तक यानी कुल 17 सालों में थोरियम रिएक्टर तक पहुंच बना लेंगे। ध्यान रहे कि हमारे पास थोरियम के विशाल भंडार हैं और थोरियम तकनीक भारत को परमाणु ऊर्जा में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बना देगी। हमारी ऊर्जा जरूरतों में परमाणु ऊर्जा के महत्व से कोई इनकार नहीं कर रहा है।
भारत-अमेरिका परमाणु करार के विरोध को परमाणु ऊर्जा के विरोध के रूप में नहीं देखना चाहिए। साथ ही परमाणु करार के तरफदारों की इस दलील में भी दम नहीं है कि बेड़ियों से जकड़ी भारत की परमाणु ऊर्जा जरूरतों को यह करार मुक्ति दिला सकता है। हम अपनी ऊर्जा जरूरतों को ऊर्जा के तमाम स्त्रोतों के सम्मिश्रण से पूरा कर सकते हैं। खासतौर से ऐसे स्त्रोत जो प्रकृति ने उन्मुक्त भाव से हम पर न्योछावर किए हैं। यह भी ध्यान रखना होगा कि विश्व में यूरेनियम के सबसे बड़े भंडार वाले आस्ट्रेलिया ने अब तक एक भी परमाणु बिजलीघर नहीं लगाया है। सातवें दशक के शुरू में थ्री माइल नामक द्वीप में परमाणु संयंत्र में हादसे के बाद अमेरिका ने भी कोई परमाणु बिजलीघर नहीं लगाया है। यह दलील कि अगर हम परमाणु करार पर आगे नहीं बढ़ते तो भविष्य में हमारे सामने ऊर्जा का संकट विकराल हो जाएगा, बेबुनियाद है। भारत-अमेरिका करार की शर्मनाक शर्ते स्वीकार किए बिना भी हम दशकों तक ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकते हैं।
[बहुचर्चित परमाणु करार की निरर्थकता बयान कर रहे हैं यशवंत सिन्हा]

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