अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत-अमेरिकी रिश्ते को हाल में 21वीं सदी की सबसे अहम साझेदारियों में से एक बताया था। इस बयान में गर्भ में दोनों देशाें के बीच 10 साल पहले 18 जुलाई 2005 को हुआ वह परमाणु करार था, जिसने असैन्य परमाणु के क्षेत्र में भारत का अछूत का दर्जा खत्म किया। भारत एनपीटी पर दस्तखत किए बिना अमेरिका से परमाणु करार करने वाला पहला देश बन गया। इसी समझौते के बाद दुनिया ने भारत के असर और रसूख को महसूस किया। इस समझौते के 10 साल पूरे ....
भारत के लिए क्यों जरूरी था करार
•25 फीसदी आबादी देश की आज भी बिजली से महरूम
•6ठां दुनिया का सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है भारत
•03 लाख मेगावाट ऊर्जा की खपत होगी देश में 2032 तक
•30 वर्षों में चार फीसदी की दर से बढ़ी है ऊर्जा की मांग
•इसे पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा एक टिकाऊ और सस्ता विकल्प
कितनी महफूज है यह ऊर्जा
•फुकुशिमा, चेर्नोबिल और इदाहो त्रासदी से परमाणु ऊर्जा पर उठे गंभीर सवाल
•2022 के बाद जर्मनी पूरी तरह बंद करने जा रहा अपने परमाणु संयंत्र
•अमेरिका ने अपने देश में एक भी नया परमाणु रिएक्टर नहीं लगाने का फैसला किया है
•भारत के कुडानकुलम परमाणु परियोजना का हो रहा विरोध
कहां पहुंचे, कितनी दूर है मंजिल
•अमेरिका की ओर से थोपे गए कुछ कड़े प्रावधानों में अभी तक उलझा रहा
•भारत के नागरिक परमाणु दायित्व कानून से अमेरिका था असहमत
•इस वर्ष जनवरी में ओबामा के दौरे के बाद बीच का रास्ता निकला
•दो अमेरिकी कंपनियाें जनरल इलेक्ट्रिक और वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक को गुजरात व आंध्र में रिएक्टर लगाने को जमीन मिली
•अभी तक एक भी रिएक्टर भारत नहीं आ सका, वहीं, अन्य देशाें के मुकाबले अमेरिकी रिएक्टर महंगे भी बताए जा रहे हैं
•अमेरिकी कंपनियां जो रिएक्टर बेच रही हैं वह न तो कहीं सक्रिय हैं और न ही उनका इस्तेमाल हुआ है
आज से 10 साल पहले अपने रिएक्टरों को चलाने के लिए भारत के पास पर्याप्त यूरेनियम नहीं था। हमारे रिएक्टर 45% क्षमता पर ही काम करते थे। मगर करार के बाद रिएक्टरों को कई देशों से यूरेनियम मिलने लगा। जिससे वे अब 80% क्षमता पर काम कर रहे हैं। समझौते से भले ही ज्यादा कुछ हमें अभी हासिल न हुआ हो, मगर ऐसे साजोसामान व उन्नत तकनीक मिली, जो हमें शायद पहले नहीं मिलती। कोर मुद्दे पर कई बाधाएं खत्म हुईं। सामरिक रूप से अमेरिका के लिए हम अहम हो गए।
Source- www.amarujala.com