Thursday 28 October 2010

परमाणु समझौता भारत ने किए सीएससी पर दस्तखत

अमेरिकी कंपनियों की चिंताओं को दूर करते हुए भारत ने अनुपूरक क्षतिपूर्ति संधि (सीएससी) पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पूर्वी एशियाई देशों की तीन दिवसीय यात्रा के दौराना टोकियो से रवाना होते समय सीएससी पर हस्ताक्षर के बाद आईएईए से संफ करने को हरी झंडी दी थी। गौरतलब है कि हाल ही में अमेरिका ने कहा था कि बिना सीएससी पर हस्ताक्षर किए भारत के साथ परमाणु करार में गतिरोध उत्पन्न हो सकता है।

करार-कितनी हक़ीक़त-कितना फ़साना

अमेरिकी कवि मार्क ट्वैन ने कहा था कि जब तक सच जूता पहन रहा होता है तब तक झूठ पूरी दुनिया का आधा चक्कर लगा चुका होता है.
भारत-अमेरिका परमाणु करार के बारे में ऐसा ही कुछ कहा जा सकता है. परमाणु करार को लेकर जितनी सच्चाई है उससे कई गुना ज्यादा है इससे जुड़ी मनगढंत कहानियां. ये कहानियां परमाणु करार के समर्थकों और विरोधियों ने गढ़ रखे हैं.

परमाणु करार – कांग्रेस द्वारा एक पत्थर से कई शिकार

सारे देश में एक “अ-मुद्दे” पर बहस चल रही है, जबकि मुद्दा होना चाहिये था “भारत की ऊर्जा जरूरतें कैसे पूरी हों?”, लेकिन यही भारतीय राजनीति और समाज का चरित्र है। इस वक्त हम विश्लेषण करते हैं भारत की अन्दरूनी राजनीति और उठापटक का… कहते हैं कि भारत में बच्चा भी पैदा होता है तो राजनीति होती है और जब बूढ़ा मरता है तब भी… तो भला ऐसे में परमाणु करार जैसे संवेदनशील मामले पर राजनीति न हो, यह नहीं हो सकता…।

कलाम, काकोड़कर और परमाणु करार

समूचे देश में इस समय परमाणु करार को लेकर “बेकरार और तकरार” जारी है, यहाँ तक कि “निठल्ला चिंतन” भी कई लोग एक साथ कर रहे हैं। जहाँ एक ओर वामपंथी अपने पुरातनपंथी विचारों से चिपके हुए हैं और चार साल तक मजे लूटने के बाद अचानक इस सरकार में उन्हें खामियाँ दिखाई देने लगी हैं, तो दूसरी ओर भाजपा है, जो सोच रही है कि बढ़ती महंगाई, फ़टी-पुरानी

तर्को से परे वाम दल

असैन्य परमाणु समझौते पर मतभेद दूर करने के लिए गठित समिति की दूसरी बैठक में भी कोई नतीजा न निकलने पर आश्चर्य नहीं। संभवत: इस समिति की आगामी बैठकें भी परिणाम विहीन रहेंगी, क्योंकि वाम दल तो यह ठान चुके हैं कि उन्हें इस समझौते पर अपनी हठधर्मिता का परित्याग किसी भी मूल्य पर नहीं करना है। इस मामले में वाम दल तर्क का जवाब तर्क से देने के लिए भी नहीं तैयार। उन्होंने साफ कहा कि उन्हे इस करार पर सरकार की कोई एक दली

ऊर्जा स्रोतों का लेखा-जोखा

करार पर भ्रम बरकरार

समझौते में निगरानी करने वालों के लिए इंस्पेक्टर यानी निरीक्षक के बजाए एक्सपर्ट यानी विशेषज्ञ शब्द का इस्तेमाल किया गया है। इससे यह भी साफ हो रहा है कि भारत ने समझौते के तहत अपने परमाणु संयंत्रें तक विदेशी ताकतों को पहुंचने की अनुमति प्रदान कर दी है।
आखिरकार भारत और अमेरिका ने परमाणु करार को आखिरी रूप दे ही डाला। दोनों तरफ के सक्षम लोगों ने करार के आखिरी मसौदे पर हस्ताक्षर कर दिए और इस करार ने अमली रूप ले लिया। इस करार का विरोध करने वालों की हर बात की अनदेखी करते हुए मनमोहन सिंह ने इसे

वैकल्पिक ऊर्जा की आवश्यकता

करार की कैद


अमरीका का आणविक ऊर्जा एक्ट 1994 भी एन.पी.टी. को ही वैश्विक परमाणु संधि का मूल आधार मानना है। इस अधिनियम की धारा 123 के तहत जिन छूटों का जिक्र आज हो रहा है, वे सर्वव्यापी नहीं हैं।डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रगश् सरकार परमाणु मुद्दे पर हासिल विश्वासमत को ‘सेन्स ऑफ हाउस’ यानि कि लोक सभा की धारणा बताने से नहीं चूक रही है। लेकिन एक सवाल पर सरकार निरुत्तर है। वह यह कि जब परमाणु मुद्दे से जुड़े सभी पहलू संसद के पटल पर रखे ही नहीं गए, तब लोक सभा किस आधार पर कोई धारणा बना सकती है?

करार पर वार की दरकार

भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के लागू हो जाने से फायदा कम लेकिन नुकसान ज्यादा दिख रहा है। इसके बावजूद देश के नीति निर्धारकों पर सनकीपन इस कदर हावी है कि वे तमाम तथ्यों और अध्ययनों को झुठलाते हुए इस करार को अंतिम रूप दे रहे हैं। समझोते के पक्ष में माहौल बनाने के लिए सत्तापक्ष सरकारी मशीनरी का ईस्तेमाल करते हुए जमकर प्रोपेगंडा कर रहा है।
भारत और अमेरिका के बीच होने वाले परमाणु करार को लेकर हर तरफ चर्चाएं चल रही हैं। करार के मसले पर ही पैदा हुए विवाद ने वाम मोर्चा को सरकार से अलग किया। इसके बाद मनमोहन

भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार विभिन्न अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर गत तीन वर्षों से चर्चा का ज्वलंत विषय रहा है।

भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार विभिन्न अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर गत तीन वर्षों से चर्चा का ज्वलंत विषय रहा है। अब आईएईए व एनएसजी की मंजूरी मिलने के बाद यह अमेरिकी कांग्रेस में प्रस्तुत होने के बाद सम्पन्न होने गया है।
परमाणु करार भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह व अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश के संयुक्त प्रयत्नों का प्रतिफल है। इससे पिछले तीन दशकों से अधिक समय से विश्व-परमाणु बिरादरी में अलग-अलग पड़े भारत को अपनी पुनर्प्रतिष्ठा प्राप्त करने में मदद मिली है।

व्यापार गोष्ठी: परमाणु करार देश के साथ छल या उपलब्धि?

बीएस टीम /  September 15, 2008
भारत का स्टेटस बिल्कुल बदल जाएगा
सतेंद्र नाथ 'मतवाला'
कालीकुंज बैरिहवां, गांधी नगर, बस्ती, उत्तर प्रदेश
परमाणु करार भारत की ऐतिहासिक उपलब्धि है। इससे भारत का स्टेटस बिल्कुल बदल गया है। एनएसजी से अनुमति मिलने के बाद परमाणु ईंधन व तकनीक के मामले में अग्रणी देशों से हमें अलग से समझौते करने होंगे। वैश्विक धरातल पर भारत की स्थिति अब और विशिष्ट हो गई है।

दो-दो बार परमाणु परीक्षण करने के बाद भी भारत परमाणु अप्रसार संधि के दायरे में नहीं आता है। इस तरह भारत को अपने ढंग से काम करने की आजादी मिली हुई है। इस तरह से सब कुछ भारत के पक्ष में हैं, इस मामले में एनएसजी कोई बाधा नहीं बन सकता।

अनुपूरक क्षतिपूर्ति संधि

अमेरिकी कंपनियों की चिंताओं को दूर करते हुए भारत ने अनुपूरक क्षतिपूर्ति संधि (सीएससी) पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पूर्वी एशियाई देशों की तीन दिवसीय यात्रा के दौराना टोकियो से रवाना होते समय सीएससी पर हस्ताक्षर के बाद आईएईए से संफ करने को हरी झंडी दी थी। गौरतलब है कि हाल ही में अमेरिका ने कहा था कि बिना सीएससी पर हस्ताक्षर किए भारत के साथ परमाणु करार में गतिरोध उत्पन्न हो सकता है।

करार से आगे की बेकरारी

परमाणु समझौते पर अंतिम मुहर भी लग गई। भारतीय विदेशमंत्री प्रणब मुखर्जी और अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस ने शुक्रवार को वॉशिंगटन डीसी में समझौते के कागजों पर हस्ताक्षर करने के बाद अमेरिकी विदेश विभाग के बेंजामिन फ्रैंकलिन हाल में जिस गर्मजोशी के साथ हाथ मिलाया उससे साफ पता चल रहा था कि दोनों सरकारों ने इस दिन का न जाने कितने दिनों से इंतजार किया है।

अमेरिकी विदेशमंत्री कोंडोलीजा राइस ने कहा कि समझौते के साथ ही दुनिया के सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्र अपने मूल्यों के आधार पर आज एक मंच पर हैं।

गैर जरूरी है परमाणु करार

दैनिक जागरण अपने संपादकीय के माध्यम से सदैव परमाणु करार का खुलकर समर्थन करता है और यह आभास कराता है कि जो इस करार का विरोध कर रहे हैं वे राष्ट्र हित की उपेक्षा कर रहे हैं। उदाहरणस्वरूप 13 जून और 25 जून का संपादकीय देखा जा सकता है। मैं इन संपादकीय में उठाए गए प्रश्नों का उत्तर देना चाहता हूं और विनम्रतापूर्वक यह भी कहना चाहता हूं कि जो लोग परमाणु करार का विरोध कर रहे हैं वे राष्ट्र विरोधी नहीं हैं। परमाणु करार विरोधी पूरी दृढ़ता के साथ विश्वास रखते हैं कि इस करार का विरोध राष्ट्रीय हित में है। इस मुद्दे

परमाणु करार पर इतनी उदारता क्यों ?

यह देश की लिए बड़े सुकून और खुशी की बात है की देश की उर्जा जरूरतों के मद्देनजर अमेरिका से परमाणु करार को करने हेतु अन्तराष्ट्रीय स्तर के परमाणु इधन आपूर्ति कर्ता देशों ने भी बिना किसी शर्त मंजूरी दे दी है । अर्थात परमाणु करार पर अब भारत और अमेरिका के बीच कोई रोड़ा नही है । यह एक उपलब्धि भरी बात है की भारत द्वारा सी टी बी टी और एन पी टी जैसी परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए बगैर भारत को उसकी आवश्यकता हेतु अन्तराष्ट्रीय बाज़ार से परमाणु संसाधन सप्लाई करने की मंजूरी मिली है साथ ही

परमाणु करार ...एक और कदम

भारत-अमरीका के बीच हुए असैन्य परमाणु करार को लागू करने की राह में भारत अब एक और कदम अपनी ओर से आगे बढ़ गया है। मई में हुए ग्रीष्मकालीन सत्र में सरकार ने विवादित परमाणु दायित्व विधेयक लोकसभा में पेश किया था, तब भाजपा समेत अन्य विपक्षी दलों के हंगामे, वाकआउट के कारण बात आगे नहींबढ़ पायी थी। इसके पहले मार्च में जब यह कोशिश की गयी तो यूपीए के समर्थक राजद व सपा के विरोध के कारण यह विधेयक आगे नहींलाया जा सका। मई तक राजद व सपा को सरकार ने मना लिया और अब अगस्त में भाजपा

परमाणु व्यापार की चकाचौंध

भारत-अमरीका परमाणु करार पूरा हो चुका है, अब आगे क्या होगाक् पिछले तीन सालों से सरकार पौराणिक किरदार अर्जुन की तरह करार पर निगाहें टिकाए हुए थी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी अपने अटूट समर्पण आत्मसंतुष्टि है। अमरीकी राष्ट्रपति बुश भी कडे विरोध के बावजूद करार को मंजूरी दिलाने में कामयाबी से प्रफुल्लित हैं। सिंह और बुश दोनों कार्यकाल के अंतिम दौर में हैं और उनके लिए यह करार उनकी विदेश नीति की सबसे बडी उपलब्धि होगी। भारत में कहानी तब तक

परमाणु करार लागू अब आगे?

 अमेरिका भारत को विशेष रूप से अपने लिए एक बड़े परमाणु बाजार में तब्दील करने में सफल हो चुका है। जैसा कि पहले ही उल्लेख किया जा चुका है भारत ने अमेरिका को यह राजनीतिक भरोसा दिलाया है कि वह उसके लिए अपने आण्विक व्यवसाय का 50 प्रतिशत आरक्षित रखेगा। इस बात का संकेत एनएसजी से मिली राहत के तीन दिनों के भीतर ही आयी अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडलीजा राइस के उस बयान से भी मिलता है जिसमें उन्होंने मांग की थी कि भारत अमेरिकी हितों का ख्याल रखे और जब तक अमेरिकी कांग्रेस 123 करार को पारित नहीं करती तब तक अमेरिकी एनएसजी के अन्य सदस्यों के साथ द्विपक्षीय व्यापार नहीं शुरू करे।

Wednesday 27 October 2010

एक विषय जिस पर खुलकर चर्चा की जरूरत है

एक विषय जिस पर खुलकर चर्चा की जरूरत है........
पिछले साल जिस परमाणू समझौते के लिए भारत में इतना विरोध प्रदशर्न हुआ वह भारत छोड़ो आन्दोलन या किसी सत्याग्रह से कम नहीं था। लगभग पूरा देश दो पक्षों में बटा हुआ आ रहा था। इसमें खास बात यह थी बहुत कम लोग ही लोग इसमें बारे में विस्तार से जानते थे कि इस समझौते में किसको क्या मिलेगा और कौन क्या खोएगा। समर्थन करने वाले लोग एक राजनैतिक पार्टी नेतृत्व के निर्णय को शिरोधार्य कर थे या कहें पार्टी नेता के पक्ष में निष्ठा व्यक्त कर रहे थे जिनमें जनसामान्य से लेकर पॄे लिखे और तकनीकी क्षेत्र के विद्वान भी शामिल थे और विरोध में पूरा विपछ खड़ा था।

परमाणु ईंधन के पुन: प्रसंस्करण समझौते के तय होने के बाद

एक बड़े व्यापारिक समूह ने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के पूर्ण क्रियान्वयन के लिए जरूरी अन्य दो कार्यों को शीघ्र निपटाने की मांग की है। 
असैन्य परमाणु समझौते के तहत अमेरिका से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से पहले भारत-अमेरिका को परमाणु अप्रसार की गारंटी देने वाले समझौते पर हस्ताक्षर करने हैं और भारत द्वारा एक परमाणु उत्तरदायित्व कानून को पारित किए जाने की आवश्यकता है।

परमाणु ईंधन : भारत-अमेरिका में करार

भारत और अमेरिका ने भारत द्वारा अमेरिका के इस्तेमाल किए गए परमाणु ईंधन का पुनर्प्रसंस्करण करने के बारे में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसे दोनों देशों के बीच हुए ऐतिहासिक असैन्य परमाणु करार को लागू करने का अंतिम चरण माना जा रहा है।
इस समझौते के लागू होने के बाद प्रबंधों और प्रक्रियाओं के जरिये भारत अमेरिका द्वारा इस्तेमाल किए गए परमाणु पदार्थों का पुनर्प्रसंस्करण करेगा। यह पुनर्प्रसंस्करण भारत द्वारा स्थापित संयंत्र में किया जाएगा और इस काम को अंतरराष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी के सुरक्षा मानकों के

भारत अमेरिका परमाणु सहयोग में अभी भी अ़डचनें

भारत अमेरिका परमाणु सहयोग में अभी भी अ़डचनें.., लेकिन अमेरिका अभी उससे संतुष्ट नहीं है। वह अमेरिकी कंपनियों की सुविधा को देखते हुए उसमें बदलाव चाहता है। उधर, अमेरिकी सरकार सीधे भारत सरकार से इस संदर्भ में संपर्क बनाए हुए है, तो इधर यहां दिल्ली में स्थित अमेरिकी राजदूत टिमोथी रोयमर भी भारतीय विदेश विभाग से संपर्क साधे हुए हैं।
रोचक यह है कि अमेरिकी सरकार अपनी कंपनियोंंं के लिए तो हर सुविधा चाहती है, लेकिन वह भारत को जरूरी रियायतें देने के प्रति अभी भी उदासीन है। अमेरिका का वायदा था कि भारत के
लिए परमाणु उपकरणों तथा उच्च तकनीक के निर्यात को सरल बनाने के लिए वह अपनी कुछ घरेलू नीतियों में बदलाव लाएगा, लेकिन अब वह इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा रहा है। परमाणु उपकरणों, तकनीक तथा सामग्री के निर्यात संबंधी संघीय नियमावली ‘सीएफआर’ (कोड ऑफ फेडरल रेगुलेशन) में भारत के प्रति आवश्यक बदलाव का वायदा वह नहीं पूरा कर रहा है।
अमेरिकी ऊर्जा विभाग चाहता है कि भारत सरकार इस तरह का अधिकृत वायदा करे कि वह अमेरिकी परमाणु सामग्री व उपकरणों का केवल शांतिपूर्ण काया] के लिए उपयोग करेगा। वह इस तरह का वायदा (अंडर टेकिंग) सीधे भारत सरकार से चाहता है, न कि एनपीसीआईएल (न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लि) से, जिसे भारत सरकार ने अमेरिकी कंपनियों द्वारा स्थापित परमाणु रियेक्टरों का संचालक (ऑपरेटर) नियुक्त किया है। भारत के विदेश विभाग का कहना है कि उसने परमाणु सहयोग के संदर्भ में १२३ समझौते के समय ही स्पष्ट रूप से अमेरिका को अधिकृत विश्वास दिलाया था (‘प्लेज’ किया था), जिसके प्रति उत्तर में अमेरिका ने भी वायदा किया था कि वह भारत के लिए अपने निर्यात नियमों का अनुकूलन करेगा तथा भारत को परमाणु तथा प्रक्षेपास्त्र तकनीक पर नियंत्रण रखने वाली तमाम संस्थाआें, ‘वैसेनार एजेंरमेंट’, ‘

परम ऊर्जाः चरम विनाश

परमाणु आयोग की योजना इस अत्यंत जहरीले कचरे को कांच में बदल कर एक ही जगह स्थिर कर देने की है। इस कांच बने कचरे को विशेष प्रकार के शीतगृह में 20 साल तक रखा जाएगा। फिर अंत में उसे किसी ऐसी जगह रखना होगा जहां पानी, भूचाल, युद्ध या तोड़-फोड़ की कोई भी घटना हजारों साल तक उसे छेड़ न
सके।परमाणु समझौते को लेकर देश में चल रही बहस में ‘बिजली और बम’ की चिंता प्रमुख है।

भगवान बचाएं परमाणु ऊर्जा से !

जिस पदार्थ की राख या बचा हुआ हिस्सा रेडियोधर्मी होकर अगले ढाई लाख वर्षों तक जहरीला बना रहे, ऐसे पदार्थ के जहरीलेपन की सीमा की कल्पना भी नहीं की जा सकती। भारत में पिछले कुछ वर्षों से ऊर्जा के क्षेत्र में परमाणु
ऊर्जा को लेकर सुनहरे सपने दिखाए जा रहे हैं। यह आलेख परमाणु ऊर्जा के खतरों के बारे में है। पानी-पर्यावरण पर होने वाले प्रभावों को सामने लाने का प्रयास यहां किया गया है।

परमाणु दायित्‍व विधेयक-2010

परमाणु दायित्‍व विधेयक-2010 पर विचार करने वाली संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि परमाणु प्रतिष्‍ठान में किसी हादसे के लिए संबंधित कंपनी को ही जिम्‍मेदार ठहराए जाने की व्‍यवस्‍था होनी चाहिए और इसके लिए हर्जाने की रकम 500 करोड़ रुपये से बढ़ा कर 1500 करोड़ रुपये की जानी चाहिए। विज्ञान व तकनीक मंत्रालय से जुड़ी स्‍थायी संसदीय समिति की

Tuesday 26 October 2010

परमाणु ऊर्जा से पैदा होगी 63,000 मेगावॉट बिजली

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम परमाणु ऊर्जा निगम ने अगले 25 सालों में 63,000 मेगावाट परमाणु बिजली पैदा करने का लक्ष्य रखा है। सरकार ने हाल ही में आठ स्थानों पर 15 नए परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने के प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दी है।
परमाणु ऊर्जा निगम के अध्यक्ष एस.के. जैन ने इस बात का

भारत अमेरिका असैनिक परमाणु करार

भारत अमेरिका असैनिक परमाणु करार, भारत के रूप में भी जाना जाता अमेरिका परमाणु करार, अमेरिका के संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के गणराज्य के बीच नागरिक परमाणु सहयोग पर एक द्विपक्षीय समझौते को संदर्भित करता है. इस समझौते के लिए एक रूपरेखा 18 जुलाई 2005 भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संयुक्त बयान और फिर अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज व. बुश, जिसके तहत भारत को अपने

भारत-अमेरिका परमाणु करार से जुड़ी कुछ बुनियादी बातें

एनपीटी क्या है?


एनपीटी को परमाणु अप्रसार संधि के नाम से जाना जाता है। इसका मकसद दुनिया भर में परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के साथ-साथ परमाणु परीक्षण पर अंकुश लगाना है। पहली जुलाई 1968 से इस समझौते पर हस्ताक्षर होना शुरू हुआ। अभी इस संधि पह हस्ताक्षर कर चुके देशों की संख्या 189 है। जिसमें पांच के पास आणविक हथियार हैं। ये देश हैं- अमेरिका, ब्रिटेन, प्रफांस, रूस और चीन। सिर्फ चार संप्रभुता संपन्न देश इसके सदस्य नहीं हैं। ये हैं- भारत, इजरायल, पा

भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के रास्ते में करीब साढ़े तीन साल में आए महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव एक नजर में :

भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के रास्ते में करीब साढ़े तीन साल में आए महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव एक नजर में :


* 18 जुलाई 2005 : प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग पर वाशिंगटन में एक संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए।